कोलकाता हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग की प्रक्रिया को बताया संतोषजनक, नागरिकता सत्यापन पर नई प्रणाली लागू करने की याचिका खारिज
2026 पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले हाई कोर्ट का बड़ा फैसला
कोलकाता, 14 अप्रैल 2025। आगामी पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों को लेकर दाखिल एक जनहित याचिका पर कोलकाता उच्च न्यायालय ने अहम फैसला सुनाया है। माणिक फकीर उर्फ माणिक मंडल बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले में कोर्ट ने चुनाव आयोग की ओर से उम्मीदवारों के नामांकन और नागरिकता सत्यापन की प्रक्रिया को पर्याप्त और संतोषजनक करार देते हुए याचिकाकर्ता की मांग खारिज कर दी।
मामले की पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ता माणिक फकीर ने जनहित याचिका के माध्यम से यह मांग की थी कि भारत का चुनाव आयोग निर्वाचित उम्मीदवारों की नागरिकता का संपूर्ण सत्यापन करने में विफल रहा है। उनका आरोप था कि कई विदेशी नागरिकों ने अवैध रूप से भारतीय नागरिकता प्राप्त कर चुनावी प्रक्रिया में भाग लिया है, जिससे चुनाव की निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है।
याचिकाकर्ता की मांग थी कि एक नई प्रणाली लागू की जाए जो उम्मीदवारों की नागरिकता की कठोर जांच सुनिश्चित करे, विशेष रूप से 2026 में प्रस्तावित पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए, जिसमें राज्य की सभी 294 सीटों पर मतदान प्रस्तावित है।
कोर्ट का फैसला और टिप्पणियां:
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:
- चुनाव आयोग का अधिकार क्षेत्र चुनाव अधिसूचित होने के बाद प्रभावी होता है।
- नामांकन की प्रक्रिया में आयोग द्वारा अपनाई गई जांच-पड़ताल पर्याप्त है।
- किसी उम्मीदवार की नागरिकता को लेकर अगर कोई विशिष्ट शिकायत या साक्ष्य प्रस्तुत होता है, तो उस पर नियमानुसार कार्रवाई की जाती है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता जिस प्रकार की नई प्रक्रिया लागू करने की मांग कर रहा है, वह विधायी दायरे में आता है, और अनुच्छेद 226 के तहत न्यायालय की सीमाओं से बाहर है।
चुनाव आयोग की दलील पर सहमति:
भारत के चुनाव आयोग की ओर से उपस्थित अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि आयोग की प्रक्रिया में पहले से ही उचित जांच और संतुलन की व्यवस्था है। किसी भी शिकायत पर कार्रवाई की जाती है, और नागरिकता संबंधी जांच भी प्रावधानों के अनुसार होती है। इस पर कोर्ट ने भी सहमति जताई।
न्यायालय की अंतिम टिप्पणी:
“नए विनियमन या प्रक्रिया को लागू करने के लिए रिट कोर्ट आदेश नहीं दे सकता। हालांकि, किसी भी नागरिक को यह अधिकार है कि वह किसी उम्मीदवार की नागरिकता या नामांकन को लेकर उचित आपत्ति दर्ज करा सके।”
इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने याचिका को निरस्त करते हुए मामला निपटा दिया।
निष्कर्ष:
इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया है कि भारत का चुनाव आयोग उम्मीदवारों की नागरिकता और पात्रता की जांच के लिए जो प्रक्रियाएं अपनाता है, वह न्यायालय की दृष्टि में पर्याप्त और वैध हैं। साथ ही यह फैसला भविष्य में चुनावी प्रक्रिया में सुधार के लिए विधायी मार्ग अपनाने की ओर भी संकेत देता है।
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