लेखक: अशोक कुमार झा (प्रधान संपादक - PSA लाइव न्यूज और रांची दस्तक)
देश की न्याय व्यवस्था पर
लोगों का विश्वास बहुत गहरा होता है। जब सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं, तब इंसान न्यायपालिका की ओर देखता है एक अंतिम उम्मीद के साथ। लेकिन
जब उसी संस्था पर सवाल खड़े होने लगेंगे , तो सोचिए, आम आदमी का भरोसा कहां जाकर टिकेगा?
हाल ही में कुछ जजों के घर
से जले हुए नोट मिलने की दुखद खबर आई। यह खबर कोई मामूली मामला नहीं है। इससे जो संकेत
मिलते हैं, वो देश की न्यायिक व्यवस्था के लिए शुभ नहीं हैं।
इस मुद्दे पर देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जो सवाल उठाया है कि "कोई
व्यक्ति कानून से ऊपर कैसे हो सकता है?" ये सवाल
देखने में जितना सीधा है, उतना ही गहरा और जरूरी भी।
आज देश के आम आदमी के सामने
एक बड़ा सवाल आ गया है कि जब न्याय की कुर्सी पर बैठा व्यक्ति ही कानून को तोड़ता
दिखे, तो फिर कौन करेगा उसका इंसाफ ? जज, जिसके ऊपर देश की न्यायिक व्यवस्था को संभालने की
जवाबदेही है, अगर उन्हीं के ऊपर ऐसा आरोप लगने लगे तो यह अपने
आप में काफी चिंताजनक है। अगर व्यवस्था को बचनी है तो जो भी गलत है, उसके खिलाफ कार्रवाई होनी ही चाहिए, चाहे वह कितने ही ऊंचे पद
पर क्यों न हो।
हमें किताबों में हमेशा से
यह पढ़ाया जाता रहा है कि हमारे देश के संबिधान में कानून सबसे ऊपर होता है।
लेकिन हकीकत तब बदलती हुई
दिखने लगती है, जब कोई ऊंचा ओहदा वाला व्यक्ति सवालों के घेरे में आता है और जांच ही
ठंडे बस्ते में चली जाती है। हमारे देश के उपराष्ट्रपति का यह कहना कि कानून से बड़ा कोई नहीं है, सिर्फ औपचारिक बयान नहीं, बल्कि एक गंभीर चेतावनी है।
हमारे देश को ऐसी न्याय व्यवस्था चाहिए, जिसमें पारदर्शिता हो, जवाबदेही हो और लोगों को
भरोसा हो। अब वक्त आ गया है कि जजों की भी संपत्ति सार्वजनिक हो, शिकायतों की जांच हो, और अगर कोई गलत पाया जाए, तो उसके खिलाफ भी उसी सख्ती से कार्रवाई हो, जैसी एक आम आदमी के खिलाफ होती है।
देश की सबसे ताकतवर संस्थाओं
में से एक है न्यायपालिका। अगर वहीं से भरोसा डगमगाने लगे, तो देश के लोकतंत्र की नींव ही हिलने लगती है। इसलिए इस मामले में सच्चाई सामने लाना और दोषियों पर कार्रवाई
करना बेहद जरूरी है। ताकि ये साफ हो जाए कि यहां कोई भी कानून से ऊपर नहीं है।
हर संस्था, विशेषकर न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही का होना अब समय कि मांग है। अगर न्यायपालिका अपने अंदर की सफाई खुद नहीं
करेगी, तो उस पर लोगों का विश्वास धीरे-धीरे कमजोर होता
जाएगा। ऐसे में यह जरूरी है कि जजों की नियुक्ति, आचरण और कार्यप्रणाली पर
निगरानी के लिए स्वतंत्र और प्रभावी व्यवस्था बनाई जाए।
आज देश के उपराष्ट्रपति ने जो साहस के साथ चिंता जतायी है, यह सवाल
अभी पूरे देश के आम लोगों के बीच घूम रहा है, जिसे समय रहते गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। लोकतंत्र में सबसे बड़ी शक्ति ‘जनता’ होती है, और जनता का विश्वास तभी तक बना रह सकता है जब देश का हर एक नागरिक चाहे वो छोटा हो या बड़ा, कानून के समक्ष सभी बराबर दिखे।
इसलिए, अब समय आ गया है कि ‘कानून का राज’ केवल किताबों में न रह जाए, बल्कि व्यावहारिक रूप से हर स्तर पर दिखाई दे। तभी एक न्यायपूर्ण, पारदर्शी और उत्तरदायी भारत का सपना साकार हो सकेगा। हमारे संविधान की आत्मा यानि लोकतन्त्र की नीव को
बचा पाना काफी कठिन हो जाएगा।

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