लेखक: अशोक कुमार झा, संपादक - रांची दस्तक एवं PSA Live News
जब भी भारत में आतंकवाद का कोई बड़ा हमला होता है—चाहे वह उरी हो, पुलवामा, या हाल ही में पहलगाम में पर्यटकों की हत्या—हर बार एक नाम अनिवार्य रूप से सामने आता है: पाकिस्तान। वर्षों से यह पड़ोसी देश आतंक की खेती करता रहा है, और इसे अपनी रणनीतिक गहराई का एक हिस्सा मानता आया है।
पाकिस्तान की फौज और ISI लंबे समय से जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से समर्थन
देती आई हैं। इनके लिए आतंकवाद एक "स्ट्रैटेजिक एसेट" रहा है, खासकर भारत के खिलाफ
"प्रॉक्सी वॉर" के रूप में। लोकतंत्र की आड़ में पाकिस्तान की सैन्य
सत्ताएं देश की नीतियां नियंत्रित करती रही हैं और आतंकवाद को अपनी विदेश नीति का
हिस्सा बना लिया है।
दुनिया की बदलती सोच
पहले वैश्विक मंच पर पाकिस्तान को ‘स्ट्रैटेजिक एली’ मानने वाली ताकतें अब उससे किनारा कर रही हैं।
अमेरिका, जो कभी
अफगान युद्ध में उसका सहयोगी था,
अब FATF
(Financial Action Task Force) जैसी संस्थाओं के माध्यम से
उस पर दबाव बना रहा है। भारत की सधी हुई कूटनीति, आतंकवाद को उजागर करने वाली वैश्विक मुहिम और
दुनिया के सामने रखे गए साक्ष्य,
धीरे-धीरे पाकिस्तान को अलग-थलग कर रहे हैं।
क्योंकि हिंदुस्तान आतंकवाद के खिलाफ सिर्फ
सैन्य नहीं, कूटनीतिक
मोर्चे पर भी आक्रामक हुआ है। सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक से लेकर अब
डिजिटल स्ट्राइक तक भारत ने
हर मोर्चे पर यह स्पष्ट कर दिया है कि अब "नरमी" की नीति नहीं चलेगी। जिससे
वैश्विक मंचों पर भारत की आवाज मजबूत हुई है, और सुरक्षा परिषद में
स्थायी सदस्यता की मांग को लेकर उसका पक्ष और भी मुखर हो
गया है।
भारत की
सुरक्षा नीति में आया निर्णायक बदलाव
1990 के दशक
में भारत की नीति मुख्यतः 'रणनीतिक
संयम' की रही, लेकिन अब ‘आक्रामक
रक्षा’ (Offensive Defence) की नीति
अपनाई जा रही है। उरी के बाद सर्जिकल स्ट्राइक और पुलवामा के बाद बालाकोट एयर
स्ट्राइक इस परिवर्तन के प्रतीक हैं। इन कार्रवाइयों ने यह स्पष्ट किया कि भारत अब
केवल प्रतिकार नहीं करेगा, बल्कि
आवश्यक हो तो सीमाओं के पार भी कार्रवाई करेगा।
यह परिवर्तन केवल सैन्य रणनीति तक सीमित नहीं है। भारत ने कूटनीतिक
मंचों पर भी पाकिस्तान के खिलाफ बहुपक्षीय समर्थन हासिल किया है, जिसमें चीन को
छोड़कर लगभग सभी बड़े राष्ट्र भारत के रुख का समर्थन कर चुके हैं।
भारत का
वैश्विक नेतृत्व और आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस
भारत ने आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक स्तर पर “Zero Tolerance Policy” का हमेशा
प्रचार किया है। संयुक्त राष्ट्र, G20, BRICS और SCO जैसे मंचों पर प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद को मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन करार दिया है।
जिसके परिणामस्वरूप भारत अब न केवल पीड़ित देश
की भूमिका में है, बल्कि
आतंकवाद के खिलाफ नीति निर्धारक की भूमिका में उभर रहा है। आतंकवाद को धार्मिक रंग
देने की कोशिशों का भी भारत ने सख्ती से विरोध किया है।
कश्मीर एक समय में आतंकियों
की प्रयोगशाला बना दिया गया था, जहां पाकिस्तान-प्रायोजित कट्टरपंथियों ने युवाओं
को बंदूक की राह पर चलने को उकसाया। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में हालात बदले हैं।
अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जिस "आग की
भविष्यवाणी" की गई थी, वह विकास और
निवेश के रूप में सामने आई।
आज कश्मीर में टूरिज्म
रिकॉर्ड स्तर पर है, स्कूल-कॉलेजों में उपस्थिति बढ़ी है, और सबसे बड़ी बात—कश्मीरी युवाओं में सेना और सिविल सर्विसेज़ की ओर
आकर्षण देखने को मिल रहा है। यह उस आतंक की विचारधारा पर सबसे बड़ा तमाचा है जो
युवाओं को सिर्फ पत्थरबाज और आतंकी बनाना चाहती थी।
आज का भारत जागरूक है। जनता अब यह समझने लगी है कि आतंकवाद केवल सीमा
पर नहीं, बल्कि
हमारी सोच, हमारी
एकता और हमारी सहिष्णुता पर भी हमला करता है। सोशल मीडिया ने जहां सच और झूठ के
बीच की रेखा धुंधली की है, वहीं
जनमत की शक्ति को भी असाधारण रूप से बढ़ाया है। अब किसी भी आतंकी घटना के बाद
लोगों की प्रतिक्रियाएं सिर्फ निंदा तक सीमित नहीं रहतीं—वे सरकार से एक्शन की मांग
करती हैं।
“ब्रेकिंग न्यूज़” की होड़ में कई बार मीडिया
आतंकवादियों को अनचाही प्रसिद्धि दे देती है। एक आतंकवादी की तस्वीरें, बयान, और मकसद फैलाना केवल उनके
प्रचार का हिस्सा बन जाता है। समय आ गया है कि मीडिया “नायक बनाम खलनायक” की परिभाषा को जिम्मेदारी
के साथ तय करे।
आज का सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि हम सभी भारतवासी सरकार, नागरिक, मीडिया, सेना और न्यायपालिका क्या आतंक के खिलाफ एकजुट
हैं? क्या हम
राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर एक मजबूत राष्ट्र बना सकते हैं?
पाकिस्तान की हालत आर्थिक रूप से डांवाडोल है, उसकी राजनीतिक व्यवस्था
अस्थिर है और आतंकी तत्व भीतर ही उसे खा रहे हैं। लेकिन हमें सिर्फ पाक को दोषी
ठहराकर नहीं रुकना, बल्कि यह
सुनिश्चित करना है कि आतंकवाद के किसी भी रूप को देश में पनपने का अवसर न मिले।
भारत की रणनीतिक आत्मनिर्भरता: रक्षा से लेकर डिप्लोमेसी तक
एक दौर था जब भारत हर बड़े
रक्षा सौदे के लिए अमेरिका, रूस या इज़रायल की ओर देखता था। लेकिन अब भारत ने 'आत्मनिर्भर भारत' अभियान
के तहत रक्षा क्षेत्र में भी आत्मनिर्भरता की दिशा में ठोस कदम बढ़ाए हैं। तेजस
जैसे स्वदेशी लड़ाकू विमान, अग्नि मिसाइल श्रृंखला, और अब स्वदेशी ड्रोन तकनीक ने यह दिखाया है कि भारत अब न केवल अपनी
सीमाओं की रक्षा कर सकता है,
बल्कि निर्यातक राष्ट्र भी
बन सकता है।
यह आत्मनिर्भरता भारत की
डिप्लोमैटिक ताकत को और मजबूती देती है। पाकिस्तान, जो अब भी चीन और सऊदी अरब
की बैसाखियों पर निर्भर है, वहीं भारत की विदेश नीति “सभी से मित्रता, आत्मसम्मान से समझौता नहीं” के सिद्धांत पर आधारित है।
जब आतंकवाद हमारे मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों और चर्चों पर हमला करता है, तो वह सिर्फ ईंट-पत्थरों को नहीं, बल्कि हमारी सहिष्णुता और
साझी विरासत को ललकारता है। लेकिन भारत ने बार-बार यह सिद्ध किया है कि— "हम टूटते नहीं, और न ही बिखरते हैं। हम एकजुट होकर और मजबूत होते हैं।"
जहां एक ओर आतंक धर्म के
नाम पर नफरत फैलाता है, वहीं भारत की संस्कृति "वसुधैव
कुटुम्बकम्" की बात करती है। आतंकवाद सीमाओं में बँधा है, पर हमारी सभ्यता हजारों वर्षों से हर संकट का सामना करती आई है और
जीवित रही है।
भविष्य में आतंकवाद केवल
बंदूकों या बमों तक सीमित नहीं रहेगा। अब साइबर
आतंकवाद एक नया मोर्चा है। Critical Infrastructure जैसे रेलवे, बैंकिंग, एयरपोर्ट, और डिजिटल ID सिस्टम को निशाना बनाना आज के आतंकवाद की नई दिशा
है।
भारत ने राष्ट्रीय साइबर
सुरक्षा नीति, CERT-In (Computer
Emergency Response Team) जैसे संस्थानों के माध्यम से इस चुनौती का मुकाबला करने की तैयारी
शुरू कर दी है। लेकिन यह भी उतना ही जरूरी है कि आम नागरिक डिजिटल साक्षर और सतर्क
हो।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का नैतिक दबदबा
भारत ने आतंकवाद के खिलाफ
युद्ध में एक मोरल अथॉरिटी प्राप्त
कर ली है। अमेरिका, फ्रांस, रूस और जापान जैसे देश भारत
के साथ खड़े नजर आते हैं, क्योंकि उन्होंने भी आतंक का ज़हर चखा है। संयुक्त
राष्ट्र में मसूद अजहर को आतंकी घोषित कराना भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत थी। यह आज का भारत है "जब भारत बोलता है, तो दुनिया
सुनती है।" यह बदलाव
केवल शब्दों से नहीं, बल्कि भारत की दृढ़ता, आत्मविश्वास और वैश्विक कूटनीति के कारण संभव हो पाया है।
आर्थिक युद्ध: पाकिस्तान को तबाह कर देने वाला मौन हथियार
जहां एक ओर भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, वहीं पाकिस्तान विदेशी कर्ज़ में डूबा हुआ है। भारत ने पाकिस्तान को Most Favoured Nation (MFN) का दर्जा छीन लिया, व्यापार बंद कर दिया, और दुनिया भर में उसकी आर्थिक नाकेबंदी की कोशिशें तेज कर दीं। युद्ध
केवल टैंक से नहीं जीते जाते, टैक्स से
भी जीते जाते हैं। भारत की आर्थिक प्रगति खुद में आतंक के खिलाफ एक बड़ा हथियार है।
हमारे बलिदान व्यर्थ नहीं
जाएंगे, क्योंकि अब भारत जाग चुका है और यह जागरण अब स्थायी है। पाकिस्तान से आतंक का हमारा खतरा वास्तविक है, लेकिन उससे कहीं ज्यादा ताकतवर है हमारे देश की एकता, संप्रभुता और लोकतंत्र। पूरी दुनियाँ जानती
है कि "पाकिस्तान हमेशा से आतंक का पोषक रहा है, लेकिन हिंदुस्तान अब उसका स्थायी शिकार नहीं रहेगा।"
क्योंकि अब दुनिया बदल रही है,
हिंदुस्तान भी बदल चुका है। ऐसे में अब यह समय है आतंक के खिलाफ वैश्विक
नेतृत्व की भूमिका निभाने का और हम सब एकजुट होकर उस परिवर्तन का हिस्सा बनेंगे।
आज पूरे देश का गुस्सा उबाल पर है और इंतजार है इस बार आतंकवाद के खिलाफ
ऐसे ठोस और कारगर कारवाई का, जिसका असर दीर्घकालीन हो और पूरी दुनियाँ
के लिये एक बड़ा संदेश बने।

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