पूर्व सिंडीकेट सदस्यों ने राज्यपाल और मुख्यमंत्री से की उच्चस्तरीय जांच की मांग
रांची। रांची विश्वविद्यालय के पूर्व सीनेट एवं सिंडीकेट सदस्य डॉ. अटल पाण्डेय और अर्जुन कुमार राम ने झारखंड उच्च शिक्षा विभाग की कार्यशैली और उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने इस संबंध में राज्यपाल और मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर तत्काल उच्चस्तरीय जांच की मांग की है।
सेवा विस्तार में नियमों की अनदेखी का आरोप
डॉ. अटल पाण्डेय ने आरोप लगाया कि नीलाम्बर-पीताम्बर विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका डॉ. विभा पाण्डेय को नियमों को दरकिनार करते हुए अनुचित रूप से सेवा विस्तार दिया गया है।
उन्होंने बताया कि विभागीय आदेश के अनुसार, तीन वर्ष की सेवा पूरी होने के बाद स्वत: विरमिति का प्रावधान है। इसके बावजूद डॉ. पाण्डेय पिछले पाँच वर्षों से कार्यरत हैं, और न तो उन्हें विश्वविद्यालय में पुनः ज्वाइन कराया गया, न ही कुलपति से NOC या अनुमति ली गई।
डॉ. अटल ने कहा, “उच्च शिक्षा विभाग अपने ही बनाए नियमों का पालन नहीं कर रहा। इससे स्पष्ट होता है कि विभाग नियमों की बजाय मनमानी से संचालित हो रहा है।”
भ्रष्टाचार और भेदभाव के गंभीर सवाल
पूर्व सिंडीकेट सदस्य अर्जुन राम ने विभागीय अधिकारियों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कहा, “समस्याओं का समाधान करने के बजाय, अधिकारी समस्याओं को जटिल बनाते हैं। शिक्षकों को न्यायालय की शरण में जाना पड़ता है क्योंकि विभाग से न्याय नहीं मिलता।”
उन्होंने यह भी कहा कि उप निदेशक, उच्च शिक्षा के पद पर विज्ञापन के अनुसार 7000/- ग्रेड पे की पात्रता तय की गई थी, लेकिन इसके बावजूद 6000/- ग्रेड पे वाले प्राध्यापकों की नियुक्ति कर दी गई, जिनमें से कई पर CBI जांच भी चल रही है। उन्होंने सवाल उठाया, “क्या ऐसे लोगों को उच्च पदों पर बैठाना विभाग की निष्पक्षता पर सवाल नहीं खड़े करता?”
विभा पाण्डेय को विशेष संरक्षण?
दोनों पूर्व सदस्यों ने यह भी आरोप लगाया कि जहाँ अन्य उप निदेशकों को सेवा से मुक्त कर दिया गया, वहीं डॉ. विभा पाण्डेय को अब तक कार्यरत रखा गया है। उन्होंने सवाल किया, “क्या विभा पाण्डेय पर विभागीय नियम लागू नहीं होते? क्या उन्हें बचाने के लिए विभाग नियमों को ताक पर रख रहा है?”
उच्चस्तरीय जांच की मांग
डॉ. अटल पाण्डेय और अर्जुन राम ने राज्य सरकार से मांग की है कि:
- उच्च शिक्षा विभाग में व्याप्त अनियमितताओं की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच कराई जाए,
- डॉ. विभा पाण्डेय को उनके मूल विश्वविद्यालय में वापस भेजा जाए,
- और विभाग की कार्यशैली में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित किया जाए।

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