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बिहार में ‘हर घर नल’: नल तो हैं, पर जल कहाँ है?

 नल लगाना पर्याप्त नहीं है, नलों में जल भी चाहिए। तभी विकास साकार होगा, वर्ना यह केवल एक दिखावा है।


बिहार सरकार की बहुचर्चित और महत्वाकांक्षी योजना हर घर नल का जल ने बीते वर्षों में खूब सुर्खियाँ बटोरीं। गाँव से लेकर शहर तक, हर घर में नल लगने की योजना को विकास का प्रतीक बताया गया। लेकिन जब हम ज़मीनी हकीकत की तरफ नज़र डालते हैं, तो यह तस्वीर उतनी उजली नहीं दिखती।

योजना का उद्देश्य और वास्तविकता

इस योजना का उद्देश्य था कि हर घर में शुद्ध पेयजल उपलब्ध हो खासकर ग्रामीण इलाकों में, जहाँ आज भी लोग कुओं, हैंडपंप या तालाबों पर निर्भर हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश, सच्चाई यह है कि:

नल तो लग गए हैं, पर उनमें पानी नहीं आता।

सैकड़ों गाँवों में पाइपलाइन बिछ चुकी है, दीवारों पर सरकारी बोर्ड लगे हैं, तस्वीरें खिंच गई हैं, उद्घाटन हो गया है मगर नलों से एक बूंद पानी भी नहीं आ रहा। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है – क्या यह योजना केवल दिखावे की है?

क्या गलत हो रहा है?

1. जल स्रोतों का अभाव

कई गाँवों में जल स्रोतों की कमी है। भूजल का स्तर नीचे जा चुका है और जलाशय सूख चुके हैं। पाइप तो हैं, पर पानी लाने के लिए स्रोत ही नहीं।

2. अधूरी पाइपलाइन और खराब निर्माण

जल आपूर्ति की पाइपलाइन कई जगहों पर आधी-अधूरी है। जहाँ बिछाई भी गई है, वहाँ लीकेज, गंदा पानी और रखरखाव की कमी एक आम समस्या है।

3. रखरखाव और संचालन में शून्यता

नल लगाने के बाद उनकी निगरानी और मरम्मत की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। ग्रामीण इलाकों में जल समितितो बनी, लेकिन उन्हें तकनीकी मदद, प्रशिक्षण और साधन नहीं मिले।

4. भ्रष्टाचार और लापरवाही

कई जगह ठेकेदारों ने सिर्फ नल लगाने का काम किया पानी आने की जिम्मेदारी किसी की नहीं रही। पैसे खर्च हो गए, फोटोग्राफ्स आ गए, मगर जनता प्यासे रह गए।

जनता का दर्द: विकास या धोखा?

बिहार के ग्रामीण इलाकों में लोग अब कहने लगे हैं:

सरकार ने नल दिया, पर उसमें पानी नहीं... इससे तो पुराना हैंडपंप ही अच्छा था।

जब हर घर में नल लगे हों लेकिन लोग फिर भी तालाब, कुओं और दूर के हैंडपंप से पानी भर रहे हों, तो यह योजना केवल कागज़ पर सफलकही जा सकती है।

यह एक गहरी विडंबना है कि जिस योजना पर करोड़ों खर्च किए गए, वह जनता के लिए राहत की जगह और अधिक निराशा का कारण बन रही है।

तो अब क्या किया जाए?

यह सवाल अब जरूरी हो गया है – कैसे यह योजना वास्तव में सफल हो? सिर्फ नल लगाना ही विकास नहीं है, बल्कि नलों में रोज़ जल पहुँचाना ही असली जीत है।

समाधान और सुझाव:

1.     जल स्रोतों का सशक्तिकरण
गाँवों में स्थानीय जल स्रोत जैसे तालाब, झील, चापाकल और वर्षा जल संचयन को पुनर्जीवित किया जाए।
हर गाँव में मिनी वाटर ट्रीटमेंट यूनिट लगाए जाएँ।

2.     24x7 जल निगरानी प्रणाली
हर पंचायत में एक जल मित्र की नियुक्ति की जाए जो रोज़ जल आपूर्ति की निगरानी करे और शिकायतों का समाधान करे।
एक मोबाइल ऐप या हेल्पलाइन शुरू हो जहाँ आम जनता रिपोर्ट कर सके कि उनके नलों में पानी नहीं आ रहा।

3.     स्थायी संचालन और रखरखाव योजना
हर पंचायत को एक स्थायी जल फंड दिया जाए जिससे मरम्मत कार्य, मोटर पंप संचालन, और पाइप लाइन सफाई होती रहे।
स्थानीय युवाओं को ट्रेनिंग देकर तकनीकी स्टाफ तैयार किया जाए।

4.     जनता की भागीदारी और पारदर्शिता
गाँव की जनता को योजना के हर चरण में शामिल किया जाए।
खर्च हुए बजट और परिणामों को सार्वजनिक किया जाए ताकि जवाबदेही तय हो सके।

केवल घोषणा नहीं, निष्पादन चाहिए

बिहार की हर घर नलयोजना एक क्रांतिकारी सोच है, लेकिन उसे क्रांतिकारी रूप से लागू करने की भी ज़रूरत है। जब तक नलों में रोज़ पानी नहीं आएगा, तब तक यह योजना केवल ईंट-पत्थर और पाइप की नुमाइश ही रहेगी।

विकास का मतलब केवल निर्माण नहीं, सुविधा की उपलब्धता है। जब हर घर के नल से पानी बहेगा, तभी यह योजना हर घर जलबन पाएगी।

अब वक्त है कि सरकार केवल आंकड़ों में नहीं, हकीकत में बदलाव करे ताकि जनता का विश्वास बना रहे, और उनका पैसा सही मायने में उनके जीवन को बेहतर बना सके।

 

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