पाकिस्तान के पूर्व सांसद डबाया राम हरियाणा में बेच रहे आइसक्रीम, पहलगाम आतंकी हमले के बाद फिर आए सुर्खियों में
लेखक: अशोक कुमार झा।
संपादक - रांची दस्तक एवं PSA Live News
भारत-पाकिस्तान के रिश्तों
में कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद नई तल्खी देखने को मिल रही है।
इसी कड़ी में, भारत में रह रहे पाकिस्तानी नागरिकों पर सख्त रुख
अपनाया गया। इस राजनीतिक माहौल के बीच पाकिस्तान के पूर्व सांसद डबाया राम का नाम
सुर्खियों में है—जो एक समय पाकिस्तान की संसद में नीति निर्धारण
में भाग लेते थे, और आज हरियाणा के एक छोटे से गांव में आइसक्रीम
बेचकर परिवार का पेट पाल रहे हैं।
संघर्षों में पला बचपन
डबाया राम का जन्म 1945 में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के एक छोटे से गांव में हुआ था। 1947 के विभाजन ने उनके परिवार को ऐसी जगह छोड़ दिया, जहां अल्पसंख्यक होना ही सबसे बड़ा अपराध बन गया। बंटवारे के बाद
कट्टरपंथ बढ़ा और अल्पसंख्यक समुदायों पर अत्याचार आम बात हो गई। डबाया राम के
परिवार पर भी कई बार दबाव डाला गया कि वे अपना धर्म छोड़ दें और इस्लाम अपना लें।
लेकिन उनके परिवार ने हर बार यह दबाव अस्वीकार किया और अपने विश्वास पर डटे रहे।
उनके पिता एक साधारण किसान
थे और गांव के लोगों के बीच उनकी ईमानदारी और सच्चाई के लिए सम्मान था। डबाया राम
ने वही मूल्य अपने जीवन में आत्मसात किए और धीरे-धीरे वे अपने समुदाय के बीच एक
मजबूत आवाज बनकर उभरे।
निर्विरोध सांसद बनना: एक ऐतिहासिक क्षण
1988 में पाकिस्तान में नेशनल असेंबली के चुनाव हुए।
अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित सीट पर डबाया राम को उम्मीदवारी मिली। चूंकि वे
समुदाय में काफी लोकप्रिय थे,
इसलिए वे बिना किसी विरोध
के सांसद चुने गए।
बताते हैं कि संसद में
डबाया राम ने बहादुरी से अल्पसंख्यकों के अधिकारों की वकालत की थी। बेनजीर भुट्टो
की पीपुल्स पार्टी का समर्थन करते हुए उन्होंने प्रधानमंत्री पद के लिए बेनजीर को
वोट दिया।
पर राजनीति के भीतर रहकर भी
वे अपने समुदाय को सुरक्षा और सम्मान नहीं दिला सके। बढ़ती असहिष्णुता, धमकियों और हिंसा ने उनके सपनों को कुचल डाला। संसद की कुर्सी पर
बैठा एक आदमी भी खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रहा था।
पलायन: आखिरी विकल्प
2000 में एक भयानक घटना ने डबाया राम के परिवार को तोड़
कर रख दिया। गांव में कुछ कट्टरपंथियों ने उनके घर पर हमला कर दिया। हालांकि कोई
जानमाल का नुकसान नहीं हुआ, लेकिन यह स्पष्ट हो गया कि अब वहां जीना मुश्किल
हो गया है।
इसीलिए उन्होंने भारत आने
का फैसला किया। लंबी कानूनी प्रक्रियाओं और संघर्षों के बाद 13 परिवारों के साथ 35
लोग भारत पहुंचे। रोहतक में
कुछ वर्ष काटने के बाद वे हरियाणा के फतेहाबाद जिले के रतनगढ़ गांव में बस गए।
यहां भी शुरुआती दिन आसान
नहीं रहे। उन्हें रोजाना पहचान पत्र, वीजा विस्तार, पुलिस वेरिफिकेशन जैसी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ा। स्थानीय लोगों के
बीच विश्वास अर्जित करने में भी समय लगा, लेकिन उनकी मेहनत, ईमानदारी और सरल स्वभाव ने गांव वालों का दिल जीत लिया।
वर्तमान संघर्ष: सम्मान से जीने की जद्दोजहद
आज डबाया राम 80 साल के हैं। उनका शरीर अब पहले जैसा मजबूत नहीं रहा, लेकिन हिम्मत आज भी जवानी जैसी है। गांव के गलियों में उनका आइसक्रीम
ठेला चलता है। बच्चों के बीच वे 'आइसक्रीम अंकल' के नाम से जाने जाते हैं।
उनकी पत्नी भी गांव में
महिलाओं के साथ कढ़ाई-बुनाई का काम करती हैं। उनके बेटे मजदूरी या छोटी-मोटी
नौकरियां करते हैं। परिवार की छह सदस्यों को भारतीय नागरिकता मिल चुकी है, बाकी आवेदन प्रक्रिया में हैं।
डबाया राम कहते हैं, "आज हमारे पास ज्यादा कुछ नहीं है, लेकिन जितना भी है, वह अपना है। यहां डर नहीं है। यहां मेहनत करने पर रोटी मिलती है और
इज्जत भी। पाकिस्तान में हम सांस भी गिन-गिन कर लेते थे।"
गांव वालों की राय
रतनगढ़ गांव के सरपंच का
कहना है, "डबाया राम जी बहुत भले आदमी हैं। कभी किसी से
लड़ाई-झगड़ा नहीं किया। गांव में सब उनका सम्मान करते हैं। बच्चों को देखते ही
आइसक्रीम फ्री में भी दे देते हैं कई बार।"
गांव के ही एक युवक बताते
हैं, "हमें तो जब पता चला कि वे पाकिस्तान के सांसद रहे
हैं, तो यकीन ही नहीं हुआ। इतने साधारण इंसान हैं कि
कोई घमंड नहीं दिखता।"
हालिया तनाव के बाद पुलिस जांच
पहलगाम आतंकी हमले के बाद
पुलिस ने एहतियात के तौर पर डबाया राम और उनके परिवार से पूछताछ की थी। लेकिन जांच
में कोई संदिग्ध गतिविधि नहीं मिली। पुलिस ने कहा कि परिवार पूरी तरह से साफ-सुथरा
है और स्थानीय समाज का हिस्सा बन चुका है।
बातचीत : डबाया राम की जुबानी
प्रश्न: संसद से ठेले तक का सफर... मन में कोई मलाल है?
डबाया राम: बिल्कुल नहीं। असली सत्ता वही है जहां आत्मा शांत हो। अब जो हूं, उसी में खुश हूं।
प्रश्न: पाकिस्तान लौटने की कभी इच्छा हुई?
डबाया राम: नहीं। वहां सिर्फ डर और भेदभाव था। यहां मेहनत से इज्जत मिलती है।
प्रश्न: भारत के लोगों से क्या उम्मीद है?
डबाया राम: उम्मीद बस इतनी कि हमें भी बराबरी से देखा जाए। देश हमारा भी उतना ही
है जितना किसी और का।
प्रश्न: युवाओं के लिए कोई संदेश?
डबाया राम: मेहनत करो, सच्चे रहो और अपने देश को प्यार करो। बाकी सब मिल
जाएगा।
एक प्रेरणा: संघर्ष, आत्मसम्मान
और नया जीवन
डबाया राम की कहानी सत्ता, संघर्ष और साधारणता का एक ऐसा मिलाजुला चित्र है, जो बताता है कि कुर्सियां बदलती रहती हैं लेकिन मेहनत और इज्जत से
जीने वाला इंसान हमेशा इतिहास में अपनी जगह बना लेता है।
आज वे किसी कुर्सी पर नहीं, बल्कि समाज के दिलों पर राज कर रहे हैं—एक ऐसी मिसाल बनकर,
जो पीढ़ियों तक याद की
जाएगी।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें