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30 अप्रैल को अक्षय तृतीया और भगवान परशुराम जयंती का पावन संगम

धर्म, पुण्य, पराक्रम और परंपरा के प्रतीक पर्व : संजय सर्राफ


रांची।
विश्व हिंदू परिषद सेवा विभाग एवं श्री कृष्ण प्रणामी सेवा धाम ट्रस्ट के प्रांतीय प्रवक्ता संजय सर्राफ ने कहा कि वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि हिंदू संस्कृति में अत्यंत शुभ और पुण्यकारी मानी जाती है। इस वर्ष 30 अप्रैल, बुधवार को अक्षय तृतीया और भगवान परशुराम जयंती का अद्भुत संयोग बन रहा है, जो धर्म, पुण्य, पराक्रम और परंपरा का प्रतीक है।

संजय सर्राफ ने बताया कि "अक्षय" का अर्थ है — जिसका कभी क्षय न हो। इस दिन किए गए दान, जप, तप, और शुभ कार्यों का फल चिरस्थायी होता है। अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्त भी कहा जाता है, जहाँ बिना किसी विशेष मुहूर्त के भी विवाह, गृह प्रवेश, व्यवसाय आरंभ आदि शुभ कार्य किए जा सकते हैं। इस दिन सोना, भूमि, वाहन आदि स्थायी संपत्तियों की खरीदारी विशेष फलदायी मानी जाती है।


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अक्षय तृतीया के दिन मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था, त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से माना जाता है, और पांडवों को श्रीकृष्ण से अक्षय पात्र की प्राप्ति भी इसी दिन हुई थी। इसलिए यह दिन पुण्य अर्जन और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

संजय सर्राफ ने आगे बताया कि अक्षय तृतीया का दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है। परशुराम जी शौर्य, बल, धर्म और न्याय के प्रतीक हैं। वे महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र थे और ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय धर्म के पालनकर्ता बने। अत्याचारी क्षत्रियों के दमन हेतु उन्होंने धरती को 21 बार क्षत्रिय विहीन कर धर्म की स्थापना की थी।


उन्होंने कहा कि परशुराम जयंती का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान परशुराम की पूजा करने से व्यक्ति को साहस, बल और धर्म की रक्षा हेतु प्रेरणा मिलती है। उनके मंत्रों का जाप मानसिक शांति और आत्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है। परशुराम को चिरंजीवी माना गया है और ऐसी मान्यता है कि वे आज भी तपस्या में लीन हैं।

पूजा विधि और दान का महत्व:
इस दिन प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें, भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और भगवान परशुराम की विधिपूर्वक पूजा करें। स्वर्ण, वस्त्र, अन्न, जल और गाय का दान विशेष पुण्यदायी होता है।

संजय सर्राफ ने कहा कि अक्षय तृतीया और परशुराम जयंती केवल पर्व नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति के दो मजबूत स्तंभ हैं — एक जहां समृद्धि और पुण्य का संदेश देता है, वहीं दूसरा धर्म और शौर्य का मार्ग दिखाता है। इन पर्वों को श्रद्धा और विधिपूर्वक मनाकर हम अपने जीवन को आध्यात्मिक उन्नति, साहस और स्थायित्व की दिशा में अग्रसर कर सकते हैं।

30 अप्रैल को अक्षय तृतीया और भगवान परशुराम जयंती का पावन संगम 30 अप्रैल को अक्षय तृतीया और भगवान परशुराम जयंती का पावन संगम Reviewed by PSA Live News on 12:39:00 pm Rating: 5

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