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सरहुल प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहर का पर्व: संजय सर्राफ


रांची। 
विश्व हिंदू परिषद सेवा विभाग एवं झारखंड अभिभावक मंच के प्रांतीय प्रवक्ता संजय सर्राफ ने कहा है कि सरहुल महोत्सव झारखंड राज्य में आदिवासी समुदायों द्वारा स्थानीय सरना धर्म के तहत बनाए जाने वाला एक प्रमुख पर्व है,सरहुल पर्व 1 अप्रैल को मनाया जा रहा है। यह त्यौहार हिंदू महीने चैत्र मे अमावस्या के तीन दिन बाद मनाया जाता है। सरहुल पर्व प्रकृति और पर्यावरण के प्रति आदिवासी समाज की श्रद्धा और आदर को दर्शाता है। यह पर्व खासतौर पर उस समय मनाया जाता है जब पेड़-पौधे, वन्यजीव और भूमि अपना प्राकृतिक सौंदर्य प्रदर्शित करते हैं। सरहुल शब्द का अर्थ होता है बूढ़ा हल जो खेती के मौसम की शुरुआत और प्राकृतिक उर्वरता के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।पर्व की शुरुआत और महत्व सरहुल महोत्सव की शुरुआत फसल कटाई के बाद की जाती है, खासकर जब जंगल में नये पेड़-पौधे और फूल खिलते हैं। आदिवासी समाज में यह पर्व प्राकृतिक शक्तियों के प्रति आभार प्रकट करने का समय होता है। खासकर संतान, स्वास्थ्य, और समृद्धि की कामना के लिए यह पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान, आदिवासी समुदाय अपने देवी-देवताओं के प्रति आस्था प्रकट करने के लिए विभिन्न अनुष्ठान करते हैं।पर्व की रिवाज और विधियाँ सरहुल महोत्सव में आदिवासी समुदाय के लोग खासकर महिलाएं, पारंपरिक पोशाक पहनकर गांव के केंद्रीय स्थान पर इकट्ठा होते हैं। इस दौरान गांव के बुजुर्ग सरहुल वृक्ष (जिसे आदिवासी समाज का संरक्षक माना जाता है) की पूजा करते हैं। गांव के लोग पूजा के बाद एकजुट होकर गीत, नृत्य और जश्न में डूब जाते हैं। आदिवासी नृत्य, जो विशेष रूप से प्रकृति के साथ उनके जुड़ाव को व्यक्त करता है, इस पर्व की प्रमुख विशेषता है। प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक सरहुल महोत्सव केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह आदिवासी संस्कृति और परंपरा का प्रतीक है। यह पर्व उनके जंगल, पहाड़, नदियों और समग्र प्रकृति के प्रति सम्मान को दर्शाता है। आदिवासी समाज अपने पूर्वजों के ज्ञान और प्राकृतिक संसाधनों के साथ जीवन जीने की कला को संरक्षित करने का प्रयास करता है। समाज में एकता और भाईचारे का संदेश सरहुल महोत्सव आदिवासी समाज में एकता, भाईचारे और प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने का संदेश देता है। यह पर्व न केवल उनके सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन को सशक्त करता है, बल्कि हमें भी यह याद दिलाता है कि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण हमारे जीवन के लिए कितना महत्वपूर्ण है। सरहुल महोत्सव प्रकृति और संस्कृति की एक अद्वितीय मूरत है, जो जीवन के हर पहलू को सम्मान देता है और हमें प्रकृति से जोड़ने का काम करता है। यह पर्व हमें यह समझने का अवसर देता है कि मनुष्य और प्रकृति का रिश्ता अटूट और अविभाज्य है। यह त्यौहार आदिवासी समुदाय के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है झारखंड में सरहुल प्रकृति का उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन आदिवासी लोग तालाब में मछली और केकड़ा पकड़ने का कार्य करते हैं सरहुल के पहले  दिन मछली के जल से अभिषेक किया जाता है और इस जल को घर में छिड़का जाता है दूसरे दिन उपवास रखा जाता है जबकि तीसरे दिन पाहन(पुजारी) उपवास करते हैं।

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