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बिहार की सिक्की शिल्प कला

 

विमल कुमार मिश्रा के कलम से।
यह पिछले  लगभग 400 साल से चली आ रही हैं। इस शिल्प कला को सिक्की नाम की घास से बनाया जाता है इसलिए इसे सिक्की शिल्प कला कहते हैं। 


यह घास बिहार के नमी वाले क्षेत्रों में पाई जाती है, यह मानसून के समय में आसानी से उग जाती हैं। इससे समान बनाने के लिए पहले इसे सुखाया जाता हैं फिर 'सिक्की जाली' नामक उपकरण से इसे धागों का रूप दिया जाता है। जिसके बाद हाथों से बुनाई कर इससे अलग अलग आकार की वस्तुएँ बनाई जाती हैं जैसे- टोकरी, ट्रे, कोस्टर, बक्से, पेन स्टैंड आदि। 


बिहार के मधुबनी, दरभंगा, सीतामढी और समस्तीपुर में आज भी इस कला से बहुत सी वस्तुओं का निर्माण किया जाता हैं। इस शिल्प कला से समान बनाने का काम अधिकतर महिलाएं ही करती हैं। आज इससे बनें सामान न केवल भारत बल्कि विदेशों में भी भेजें जा रहे। 


साथ ही इस कला को GI टैग मिल चुका हैं।

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